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सूर्य मंदिर, कोणार्क

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सूर्य मंदिर, कोणार्क

ओडिशा

कोणार्क मंदिर, तेरहवीं शताब्दी के उड़ीसा राज्य का एक उत्कृष्ट प्रमाण है। यह सीधे तौर पर और वास्तविक रूप से ब्राह्मण आस्थाओं से जुड़ा हुआ है और सूर्य के उस धर्म के फैलाव के इतिहास की एक मूल्यवान कड़ी है जिसका आरंभ आठवीं शताब्दी के दौरान कश्मीर में हुआ और यह अंत में पूर्वी भारत के तट तक पहुंच गया।

किमारक का ब्राह्मण मंदिर (जिसे अब भी कोणारक या कोणार्क कहा जाता है) भारत के पूर्वी तट पर, महानदी डेल्टा की दक्षिण दिशा में एशिया के अति प्रसिद्ध ब्राह्मण पवित्र स्थलों में से एक है। कोणार्क का नाम, सूर्य मंदिर के ईष्ट देव कोणार्क के नाम पर है। कोणार्क दो शब्दों से मिलकर बना है, कोण (कोना) और आर्क (सूर्य)। यह भारत में सूर्य पूजा के सबसे पुराने केन्द्रों में से एक है। राजा नरसिंह देव के शासनकाल में लगभग सन् 1250 में निर्मित यह मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित विविध निर्माण कार्यों के चरमोत्कमर्ष को दर्शाता है; पूरे मंदिर की संकल्पना तीलियों के सैट और भव्य नक्काशी युक्त सूर्य भगवान के रथ के रूप में की गई थी।

मौजूदा सूर्य मंदिर गंगा वंश के राजा नरसिंह देव 1 (1238-64) द्वारा मुसलमानों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्‍य में निर्मित किया गया था। 17वीं शताब्दी की शुरूआत में इसे मुगल बादशाह जहांगीर के दूत द्वारा अपवित्र किए जाने के पश्चात बंद कर दिया गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर भगवान कृष्ण के पुत्र संबा द्वारा निर्मित किया गया था। संबा कुष्ठ रोग से ग्रस्‍त था और 12 वर्ष तक प्रायश्चित करने के पश्चात वह सूर्य देवता के आशीर्वाद से रोगमुक्त हो गया और सूर्य देव के सम्मान में ही उसने इस मंदिर का निर्माण करवाया।